मंगलवार, 8 जून 2010

shantisena

रचनात्मक काम की रक्षा के लिए

नूर बताना बाकी है

आज हिंसा पर बड़े बड़े सेनापतियों की भी श्रद्धा नहीं हैदुनिया का कोई भी सयाना आदमी हिंसा पर विश्वास नहीं करेगाइस तरह हिंसा से श्रद्धा तो उठ गई, लेकिन अभी अहिंसा पर श्रद्धा नहीं बैठ पाई हैअगर अहिंसा अपना नूर बताती है, तो उस पर श्रद्धा बैठ सकेगीअगर हिंसा में रहनेवाली संगठन करने की ताकत अहिंसा भी दिखाए, तो लोग जिनकी वृत्ति तो अहिंसा के अभिमुख हो ही गयी है - अहिंसा पर विश्वास और श्रद्धा भी करेंगेयह अलग बात है कि हिंसा में लाखों को इकठ्ठा करने की बात होती है, वह अहिंसा में नहीं सकतीअहिंसा में संख्या नहीं, गुणों की जरूरत होती हैयहाँ जो अत्यंत गुणवान होगा और वह जो काम करेगा, वह हिंसक नहीं कर सकेगाइसलिए गुणात्मक फर्क हैकुछ छोटे कहते कामों में संख्या की जरूरत भी होती है, लेकिन थोड़ी, बहुत संख्या की नहींवे अगर २५ हज़ार भेजते हैं, तो हमें २५ भेजने की जरूरत होगी

लेकिन सवाल यह है कि यह थोड़ी संख्या भी कौन लाये ? कहाँ से लायें? कौन आएगा ? सेना में तो १८-२० साल की उम्र वाले जवान भर्ती होते हैंअहिंसा में यह जरूरी नहीं कि जवान ही आयेंउसमें बूढ़े भी सकते हैंबहन, भाई बच्चे तक भी सकते हैयह आंतरिक गुणों का सवाल हैइसलिए इसमें बहुत से लोग सकते हैंमुझे लगता है कि जो लोग गाँधी विचार मानते हैं, भले ही वे जिस किसी क्षेत्र में काम करते रहें, पूरे शांति सैनिक होने चाहिएअगर वे शांति सैनिक नहीं बनते, तो नमकहराम होते हैं

रक्षक या रक्षित

खादीवालों को ही लीजियेखादी इन्हें खिलाती-पिलाती है, इनका पोषण और रक्षण करती हैअगर ये शांति सैनिक नहीं बनते तो उसके मने यह हुए कि खादी इनका बचाव करती है, लेकिन ये उसका बचाव नहीं करतेनयी तालीम का ही विचार लीजियेइसमें हमारा टेक्निक क्या हो, तंत्र क्या सिखाया जाये, तंत्र या मंत्र, इस पर बहुत चर्चा चलीनयी तालीम जीवन का मंत्र है और चरखा वगैरह उसके यन्त्र। लेकिन जितने नयी तालीम का काम करने वाले शिक्षक हैं, वे सहज ही शांति सैनिक होने चाहिएअगर वे शांति सैनिक नहीं बनते, तो 'नमकहराम' बनते हैंयाने अहिंसा उनका पालन कर रही है, रक्षण कर रही है, लेकिन अहिंसा का पालन और रक्षण करने के लिए वे तैयार नहीं हैं। शास्त्र में एक वचन है : धर्मो रक्षति रक्षित: - धर्म आपका रक्षण करेगा, अगर आप उसका रक्षण करेंगेसत्य हमारा पालन करेगा, अगर हम सत्य का पालन करेंगेगाय हमें दूध देती है और हमारा पालन करती है, लेकिन हम उसका पालन करें तो वह हमारा पालन कैसे करेगी ? यह जिम्मेदारी परस्पर पालन की हैनयी तालीम तभी टिकेगी, जब देश में नयी तालीम के शिक्षक शांति सेना का काम उठाएंगे

कस्तूरबा वाले एक मोह में फंसे हैंकभी-कभी अपना मोह होता हैउन्होंने आज तक सोशल वेल्फैर वालों का काम करने में परोपकार किया हैलेकिन मेने कहा, स्वोपकर तो करो, अपने लिए करुना रखो, नहीं तो हम टिक नहीं सकते

1 टिप्पणी:

  1. It is a bit harsh article. First try to look inwards, as Gandhiji had said, "Turn the searchlight inwards". Prof. To call others Namakharam, is a bit too much. In fact I think, we all have eaten Vinobaji's namak and have turned namakharam.
    Otherwise, it is quite okay to advise others to do this and do that.

    Why don't you take up the task under the advise of some senior Sarvodaya workers, to build up Shanti Sena in India. You can begin first with all the Sarvodaya workers, ask them if they consider themselves "Shanti Sainiks" or not, Take the pledge of Shanti Sena to them and then slowly proceed to Constructive organisations and workers in them. You will really get many good, well-meaning, honest constructive workers, who still believe in the true philosophy of Sarvodaya Samaj.
    And please do not bring Jayaprakash Narayan in everything you want to say, as you do always. And say that because of JP movement Shanti Sena got finished!!!(this is written in a lighter vein, I hope you understand.)

    Daniel Mazgaonkar.

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