बुधवार, 9 जून 2010

भारत में अहिंसा

भारत में अहिंसा प्रकट हो

भारत ने मुक्ति का आध्यत्मिक मार्ग खोजा

जब कोई देश पराधीन होता है, किसी सत्ता के हाथ में चला जाता है, तो या तो वह बिलकुल दब जाता है या झगडे के लिए खड़ा हो जाता हैलेकिन भारत ने दोनों में से कोई बात नहीं कीउस ज़माने का भारत बंगाल ही था, क्योंकि अंग्रेजों के कब्जे में प्रथम बंगाल गया और बाद में भारत के सब हिस्सेअंगरेजी सभ्यता का मुकाबला पहले बंगाल में हुआ। यहाँ जो पुरुष पैदा हुए उन्होंने दब जाना पसंद किया और शास्त्र लेकर लड़ना हीबल्कि तीसरी चीज आत्मशोधन को ही पसंद किया

यह बहुत बड़ी बात थीदुनिया में शायद ही इस तरह की कोई मिसाल मिलेहमारे यहाँ के नेताओं ने सोचा कि जब इतनी विशाल भारत संस्कृति पराधीन होती है, तो वह हमारे लिए सोचने का एक विषय होगाकुछ दोष, कुछ न्यूनता होगी, उसका हमें संशोधन करना होगाअतएव उन्होंने अध्यात्मिक संशोधन का विचार कियाइसका बहुत बड़ा असर हुआ। मंथन के परिणामस्वरूप सभी संस्कृतियों के समन्वय का विचार यहाँ हाथ में आया

भारत की समन्वय दृष्टि

भरता के लिए यह नया विचार नहीं थाबादरायण ने अपने सूत्र में 'ततु समन्वयत (परमात्मा का दर्शन समन्वय में होता है) लिख ही रखा हैवह समन्वय की साधना थीयह अपने देश की विशेषता है। भारत में विविधता है, वह 'महामंवर सागर हैभारत की पाचन क्रिया बहुत तेज हैभिन्न-भिन्न सभ्यताएं, संस्कृतियाँ जब परस्पर निकट आती हैं, तब उनका सारभूत अंग खींचकर आत्मसात कर लेने पर मधुर निष्पत्ति होती हैइस तरह जो भी लोग बाहर से आये, वे यहाँ की समन्वय प्रक्रिया में घुल-मिल गएयह भारत की अपनी दृष्टि थीभिन्न-भिन्न धर्मों के साथ समन्वय का यह विचार था तो पुराना, लेकिन तब दुनियाभर के धर्मों से हमारा सम्बन्ध आता नहीं थाइसलिए यहाँ जितना धर्म विचार था, उसका सर हमने ले लियालेकिन पाश्चात्य संकृति जहाँ आयी वहां हिन्दुओं के लिए चिंतन का दालान खुल गयाउनके कारण नवीन विचार प्रचार शुरू हुआ और भिन्न-भिन्न धर्मों एवं उनकी उपासनाओं के समन्वय का विचार यहाँ सूझा

शंकराचार्य ने अपने ज़माने में पंचायतन पूजा चलायीभारतवर्ष में जो पंथ थे, उन सबको समन्वय से एक बार लियालेकिन उसके बाद इस्लाम धर्म आया, इसाई धर्म आया, विज्ञानं आयाइसके साथ भी समन्वय की नयी जरूरत पैदा हुईवह समन्वय यहाँ बंग भूमि में हुआपरिणामत: जाग्रति आयीबाद में कोंग्रेस आयी, राजनीती का विचार आयालेकिन उस राजनीती को तत्त्व विचार का आधार मिलाराममोहन रॉय से लेकर महात्मा गाँधी तक जितने राजनैतिक पुरुष हो गए- चाहे वे श्री अरविन्द हों, महात्मा गाँधी हों या लोकमान्य तिलक होंसबका आधार यहाँ का अध्यात्म विचार थाइसलिए यहाँ की राजनीती बहकी नहीं। बाहर से राजनीती आयी, लेकिन वह यहाँ से जन समुदाय पर असर नहीं दल सकीमहात्मा गाँधी को इस पृष्ठभूमि का लाभ मिला और उन्होंने भारत की संस्कृति के अनुकूल अहिंसा का शस्त्र दियाअगर यह अध्यात्म संशोधन हुआ होता, तो समाज महात्मा गाँधी का अहिंसा का शास्त्र सुनने को राजी होतोइतिहास में तो ऐसी कोई अन्य मिसाल नहीं, जहाँ अहिंसा के जरिये एक सल्तनत हटाई गयी होलेकिन यह पूरी पृष्ठभूमि थी, इसलिए लोगों ने यह विचार स्वीकार कर लिया

अहिंसा एक ऐतिहासिक आवश्यकता

आज तो हमारे सामने बहुत बड़ा विश्व रूप दर्शन हैभारत की आजादी का सवाल आसन थाअंग्रेज आये, उन्होंने ऐसा काम किया जो किसी सल्तनत ने पहले नहीं कियाउन्होंने प्रजा को नि:शस्त्र बनायाप्रजा को :शस्त्र बनाने में बहुत खतरा होता हैइससे प्रजा जाती है, राज चलाना तो आसन होता हैलेकिन बहार के हमले के समय यह प्रयोग खतरनाक साबित होता है:शस्त्र प्रजा के सामने इसके आलावा कोई चारा नहीं की वह सदा के लिए गुलाम बन जाये या ऐसा शस्त्र खोज निकले जिसका कोई मुकाबला होयह एक ऐतिहासिक आवश्यकता थीहिंसा शक्ति नहीं रही और इसलिए उसे अहिंसा शक्ति का आश्रय लेना पड़ाअगर गांधीजी आते और दूसरा कोई व्यक्ति आता और लोगों के सामने ये विचार रखता तो लोग मान लेतेवह :शस्त्रइकरण अनिवार्य थागांधीजी ने हमें सिखाया कि हम सहयोग हटा लें तो उनका राज गिर जायेगा कारण वैसा उनको अनुभव आया

आज दुनिया की परिस्थिति बहुत कठिन है। वह बहुत अधिक शस्त्र हो गयी हैजिधर देखो, उधर शस्त्र हैंये शस्त्र मानव की हाथ नहीं, मानव उनके हाथ चला गया हैइसलिए आज की परिस्थिति में अहिंसा के सिवा इलाज नहींभारत की उस परिस्थिति में इलाज हो सकता थाजहाँ युद्ध शुरू हो जाते हैं वहां देश को लाभ पहुच सकता हैजैसे ब्रह्मदेश या श्रीलंका को लाभ मिलाइस तरह भारत को भी लाभ मिल सकता थालेकिन आज दुनिया की जो हालत है, उसमें अहिंसा अत्यंत अनिवार्य हैअब इस बात की अभिज्ञता बंगाल को जल्दी से जल्दी होनी चाहिएजिस प्रदेश में इतना अध्यात्म संशोधन हुआ, वहां यह संशोधन भी होना चाहिएयह ध्यान में आना चाहिए कि अब अहिंसा अनिवार्य हैइसके आगे अहिंसा शक्ति तारिणी शक्ति बनेगीचंडी शक्ति नहीं चलेगीहम अहिंसा को भारती नाम दे दें, जिसने और देशों का आह्वान दे दिया और सब जातियों का समाहार कियाआज अक्षोभ युक्त शांति से काम करना होगाअक्षोभ युक्ता शांति आज के ज़माने का बहुत बड़ा शस्त्र है

पुष्पेन्द्र

मंगलवार, 8 जून 2010

shantisena

रचनात्मक काम की रक्षा के लिए

नूर बताना बाकी है

आज हिंसा पर बड़े बड़े सेनापतियों की भी श्रद्धा नहीं हैदुनिया का कोई भी सयाना आदमी हिंसा पर विश्वास नहीं करेगाइस तरह हिंसा से श्रद्धा तो उठ गई, लेकिन अभी अहिंसा पर श्रद्धा नहीं बैठ पाई हैअगर अहिंसा अपना नूर बताती है, तो उस पर श्रद्धा बैठ सकेगीअगर हिंसा में रहनेवाली संगठन करने की ताकत अहिंसा भी दिखाए, तो लोग जिनकी वृत्ति तो अहिंसा के अभिमुख हो ही गयी है - अहिंसा पर विश्वास और श्रद्धा भी करेंगेयह अलग बात है कि हिंसा में लाखों को इकठ्ठा करने की बात होती है, वह अहिंसा में नहीं सकतीअहिंसा में संख्या नहीं, गुणों की जरूरत होती हैयहाँ जो अत्यंत गुणवान होगा और वह जो काम करेगा, वह हिंसक नहीं कर सकेगाइसलिए गुणात्मक फर्क हैकुछ छोटे कहते कामों में संख्या की जरूरत भी होती है, लेकिन थोड़ी, बहुत संख्या की नहींवे अगर २५ हज़ार भेजते हैं, तो हमें २५ भेजने की जरूरत होगी

लेकिन सवाल यह है कि यह थोड़ी संख्या भी कौन लाये ? कहाँ से लायें? कौन आएगा ? सेना में तो १८-२० साल की उम्र वाले जवान भर्ती होते हैंअहिंसा में यह जरूरी नहीं कि जवान ही आयेंउसमें बूढ़े भी सकते हैंबहन, भाई बच्चे तक भी सकते हैयह आंतरिक गुणों का सवाल हैइसलिए इसमें बहुत से लोग सकते हैंमुझे लगता है कि जो लोग गाँधी विचार मानते हैं, भले ही वे जिस किसी क्षेत्र में काम करते रहें, पूरे शांति सैनिक होने चाहिएअगर वे शांति सैनिक नहीं बनते, तो नमकहराम होते हैं

रक्षक या रक्षित

खादीवालों को ही लीजियेखादी इन्हें खिलाती-पिलाती है, इनका पोषण और रक्षण करती हैअगर ये शांति सैनिक नहीं बनते तो उसके मने यह हुए कि खादी इनका बचाव करती है, लेकिन ये उसका बचाव नहीं करतेनयी तालीम का ही विचार लीजियेइसमें हमारा टेक्निक क्या हो, तंत्र क्या सिखाया जाये, तंत्र या मंत्र, इस पर बहुत चर्चा चलीनयी तालीम जीवन का मंत्र है और चरखा वगैरह उसके यन्त्र। लेकिन जितने नयी तालीम का काम करने वाले शिक्षक हैं, वे सहज ही शांति सैनिक होने चाहिएअगर वे शांति सैनिक नहीं बनते, तो 'नमकहराम' बनते हैंयाने अहिंसा उनका पालन कर रही है, रक्षण कर रही है, लेकिन अहिंसा का पालन और रक्षण करने के लिए वे तैयार नहीं हैं। शास्त्र में एक वचन है : धर्मो रक्षति रक्षित: - धर्म आपका रक्षण करेगा, अगर आप उसका रक्षण करेंगेसत्य हमारा पालन करेगा, अगर हम सत्य का पालन करेंगेगाय हमें दूध देती है और हमारा पालन करती है, लेकिन हम उसका पालन करें तो वह हमारा पालन कैसे करेगी ? यह जिम्मेदारी परस्पर पालन की हैनयी तालीम तभी टिकेगी, जब देश में नयी तालीम के शिक्षक शांति सेना का काम उठाएंगे

कस्तूरबा वाले एक मोह में फंसे हैंकभी-कभी अपना मोह होता हैउन्होंने आज तक सोशल वेल्फैर वालों का काम करने में परोपकार किया हैलेकिन मेने कहा, स्वोपकर तो करो, अपने लिए करुना रखो, नहीं तो हम टिक नहीं सकते