युग की आवश्यकता
मूल समस्या
आज सारी दुनिया की मूल समस्या शांति स्थापना की है। शायद ही किसी ज़माने में दुनिया को आज जैसी शांति की भूख रही हो। जो देश कल तक हिंसा के विचार में डूबे हुए थे, वे आज हिंसा से मुक्ति पाना चाहते है। आज भी वे शस्त्रास्त्र बढ़ाते है, फिर भी उससे मुक्ति कैसे होगी, यह सोच रहे है। वे शस्त्रास्त्र क्यों बड़ा रहे है ? क्योकि आदत से लचर है। लेकिन मन में समझे हुए है कि उससे कुछ होने जानेवाला नहीं। अगर होने वाला है, होगा तो गरीबो का नुकसान ही होगा और जीवन सुधर में रुकावट आयेगी, क्योकि बहुत सारा धन सेना पर खर्च होगा। जिन देशो में खुनी क्रांति हुई है, वे भी आज शांति चाहते हैं। इसका कारण क्या है ? अभी तक शस्त्रास्त्र मानव के हाथ में थे, लेकिन अब वे उसके हाथ में नहीं, मानव ही उसके हाथ में पहुँच गया है। कहीं अगर विश्व युद्ध की आग लग जाये, तो कोई भी उसका नियंत्रण नहीं कर सकेगा। इसलिए समस्यनों का हल युद्ध या हिंसा से होगा, यह आज मनुष्य को आशा नहीं रही। यह बहुत बड़ी बात है। काम-से-काम इतना हुआ है, तो आगे की रह खुल जाएगी। अगर शास्त्र से मसाले हल नहीं होते, तो ऐसा कोई मार्ग निकालना होगा, जो मसले हल कर सके। इसीके लिए है शांति सेना की योजना।
रक्षणकारिणी अहिंसा
आज हिंसा में एक जगह एकत्र शक्ति लाने की जो सहूलियत है, वह अहिंसा में न हो तो अहिंसा काम नहीं करेगी। अंतिम हालत में वैसा प्रसंग न भी आये। जब मानसिक, भौतिक और सामाजिक परिवर्तन हो चूका होगा, उस हालत में यह सवाल नहीं आयेगा, परन्तु आज, जब कि समस्या उपस्थित है, हिंसक एकदम हजारो- लाखों लोगों को एकत्र खड़े कर सकें, तो अहिंसा रक्षणकारिणी नहीं होगी, जीवन में थोडा-सा माधुर्य भर लानेवाली भले ही हो।
विश्वास की शक्ति
एक दफा मैं बिहार में घूम रहा था। मेरी यात्रा वेध्यानाथ धाम की तरफ जा रही थी। उस समय वैद्यनाथ धाम के भक्त मेरे पास आते और बोलते : बम भोलानाथ। मैं उनसे कहता : तुम 'बम भोले, बम भोले' क्यों बोल रहे हो, लेकिन कुछ समझते भी हो कि आज दुनिया की मांग क्या है ? आज बम तो अमेरिका में है और भोलानाथ हिंदुस्तान में। इस तरह बम भोलानाथ का बटवारा हो गया है। क्या सचमुच बोले बन सकते हैं ? क्या जान-भूझकर सामनेवाले पर विश्वास रखने की हिम्मत है ? यह नहीं कि मूर्ख बनकर सामनेवाले पर विश्वास रखो। सारांश, आप में जान-बूझकर सामने वाले पर विश्वास रखने की हिम्मत आणि चाहिए। चाहे वह चूरी लेकर आया हो, तो भी उसकी गोद में सोने की तयारी रखकर उससे कहना चाहिए कि अगर हिम्मत हो, तो चलाओ चूरी मेरी गर्दन पर। मेरी हिम्मत तो है तुम्हारी गोद में सोने की।" इस तरह की हिम्मत नौजवानों में आणि चाहिए। इसीको कहते हैं 'भोलानाथ'। शांति सेना में 'बम' और 'भोलानाथ' दोनों इकट्ठे हो जाते है। 'शांति' और 'सेना' दोनों मिल कर 'शांतिसेना' होती है। २४-५-२०१०
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